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सूरदास

सूरसागर सूरसागर , ब्रजभाषा में महाकवि सूरदास द्वारा रचे गए कीर्तनों-पदों का एक सुंदर संकलन है जो शब्दार्थ की दृष्टि से उपयुक्त और आदरणीय है। इसमें प्रथम नौ अध्याय संक्षिप्त है, पर दशम स्कन्ध का बहुत विस्तार हो गया है। इसमें भक्ति की प्रधानता है। इसके दो प्रसंग "कृष्ण की बाल-लीला' और "भ्रमर-गीतसार' अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। सूरसागर में लगभग एक लाख पद होने की बात कही जाती है। किन्तु वर्तमान संस्करणों में लगभग पाँच हजार पद ही मिलते हैं। विभिन्न स्थानों पर इसकी सौ से भी अधिक प्रतिलिपियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनका प्रतिलिपि काल संवत् १६५८ वि० से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी तक है इनमें प्राचीनतम प्रतिलिपि नाथद्वारा ( मेवाड़ ) के सरस्वती भण्डार में सुरक्षित पायी गई हैं। दार्शनिक विचारों की दृष्टि से " भागवत ' और "सूरसागर' में पर्याप्त अन्तर है। सूरसागर की सराहना करते हुए डॉक्टर हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है - काव्य गुणों की इस विशाल वनस्थली में एक अपना सहज सौन्दर्य है। वह उस रमणीय उद्यान के समान नहीं जिसका सौन्दर्य पद-पद प...
हिन्दी साहित्य का इतिहास संपादित करें मुख्य लेख:  हिंदी साहित्य का इतिहास हिंदी साहित्य का आरंभ आठवीं शताब्दी से माना जाता है। यह वह समय है जब  सम्राट् हर्ष  की मृत्यु के बाद देश में अनेक छोटे-छोटे शासन केंद्र स्थापित हो गए थे जो परस्पर संघर्षरत रहा करते थे। विदेशी  मुसलमानों  से भी इनकी टक्कर होती रहती थी।  हिन्दी साहित्य  के विकास को आलोचक सुविधा के लिये पाँच ऐतिहासिक चरणों में विभाजित कर देखते हैं, जो क्रमवार निम्नलिखित हैं:- आदिकाल  (१४०० ईसवी से पहले) भक्ति काल  (१३७५-१७००) रीति काल  (१७००-१९००) आधुनिक काल  (१८५० ईस्वी के पश्चात) नव्योत्तर काल  (१९८० ईस्वी के पश्चात) आदिकाल (१०५० ईसवी से १३७५ ईसवी) संपादित करें मुख्य लेख:  आदिकाल हिन्दी साहित्य आदिकालको आलोचक १४०० ईसवी से पूर्व का काल मानते हैं जब  हिन्दी  का उद्भव हो ही रहा था। हिन्दी की विकास-यात्रा  दिल्ली ,  कन्नौज  और  अजमेर  क्षेत्रों में हुई मानी जाती है।  पृथ्वीराज चौहान  का उस समय  दिल्ली ...