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2nd year 4th sem

UNIT -1 ध्रुवस्वामिनी नाटक का प्रधान पात्र ध्रुवस्वामिनी है। ध्रुवस्वामिनी का नामकरण नायिका के नाम पर है। नाटक की फलभोक्ता भी ध्रुवस्वामिनी है। अतः इस नायिका प्रधान नाटक की नायिका ध्रुवस्वामिनी ही है। ध्रुवस्वामिनी का चरित्र अनेक विशेषताओं से युक्त है। ध्रुवस्वामिनी लिच्छिवि राजा की पुत्री है। उसके पिता उसे मगध के राजा आर्य समुद्रगुप्त की संया में उपहार स्वरूप भेजता है। चन्द्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी एक दूसरे से प्रेम करते हैं। अतः यह पूर्व निश्थित है कि उन दोनों का विवाह होगा। विवाह होने से पहले चन्द्रगुप्त के पित्ता सम्राट समुद्रगुप्त का स्वर्गवास हो जाता है। समुद्रगुप्त चन्द्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी घोषित करके मरते हैं। वे यह भी स्पष्ट कर देते हैं कि ध्रुवस्वामिनी और चन्द्रगुप्त का परिणय होना है। चन्द्रगुप्त का बड़ा भाई रामगुप्त मंत्री शिखरस्वामी के सहयोग से राजसिंहासन पर बैठता है। ध्रुवस्वामिनी की इच्छा के विरुद्ध उसका विवाह रामगुप्त में कर दिया जाता है। रामगुप्त जैसे क्लीव पुरुष को अपने पत्ति के रूप में पाकर ध्रुवस्वामिनी अत्यंत दुःखी हो जाती है। महादेवी के सम्मानित्त पद पर पहुँच...

1st year 2nd sem

MODERN POETRY PANCHVATI एक दिन लक्ष्मीनारायण मिश्र प्रश्न- एकांकी नाटक के तत्वों की दृष्टि से (एक दिन) की आलोचना कीजिये एकांकी का परिचय- हिन्दी नाट्य साहित्य में श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र का अत्याधिक महत्वपूर्ण स्थान है और समस्यामूलक नाटकों की परम्परा का सूत्रपात उन्हीं से हुआ। अशोक, संयासी, राक्षस का मंदिर, मुक्ति का रहस्य, राजयोग सिंदूर की होली, आधी रात, जात की वीणा, गरुजुध्वज और यक्ाराज आदि नारकों के साथ-साथ उनीने कुछ सुन्दर एकांकी नाटक भी लिखे हैं। 'एक दिन' उनका उल्लेखनीय सामाजिक एकांकी है और इसमें उनकी एकांकी कला विचारधारा का सुन्दर उदाहरण कहा जाता है। एकांकी का सारांश एकांकीकार ने एकांकी का प्रारम्भकरते हुए लिखा है 'देहात के किसी गांव में खपरैल का मकान। माटी की दीवारें, चिकनी कर चूने से लीपी गई हैं। आगे की ओर काट के खम्भों पर ओगरा। खम्भे काले पड़ गये है, उनके रंग से ही उनकी आयु फूट रही है। उनका हीर इतना सूख गया है कि जगह-जगह देखी-मेढ़ी दरारें पड़ गई है। जाति का गुण और बल और कही माना जाय या नहीं, इन खम्भों की लकड़ी में ती ठोस है। के शीशम के खम्बे अपनी टेक से पत्थर के का...

1st Year 1st semester

1st Year 1st Semester  UNIT - 1 भारतीय संस्कृति  भारत एक विशाल देश है। इस कारण कोई भी विदेशी इसे कई देशों को समूह कह उठेगा। भारत अपनी विभिन्नताओं के लिए भी प्रसिद्ध है। प्रकृति की दृष्टि से हो या भाषा की दृष्टि से थे विभिन्नताएँ देखने को मिलते हैं। परंतु इन विभिन्नताओं के बीच एक एकताहुए लेखक बनाते है कि हमारी संस्कृनि नैतिकता और आध्यात्मिकता है, वह एक के समान है। आज तक उन्होंने हमारी संस्कृ जीवित रखा है। विषम से विषम परिस्थितियों इमें मिटने से बचा लिया है। अहिंसा तत्व के बारे में बताने हुए लेखक कि यह तो विश्व के लिए भारत की देन है। आहिर का दूसरा नाम ही न्याया है। अहिंसा और त्याग की भावना से इसने सबको फूलने-फलने का अवसर दिया है। | इमने भिन्न-भिन्न विचारधाराओं को स्वच्छंदता पूर्वक अपने-अपने रास्ते में बहने दिया। भिन्न-भिन्न देशों की संस्कृतियों मियों को अपने में मिलाया और अपने को उसमें मिलने दिया। ह‌मारी सामू‌हिक चेतना दूढ़ है और यही हमारे देश का प्राण है। इस वैज्ञानिक युग में जब हमारे हाथों में अपरिचित शक्ति है।  विशेषता : भारत की विभिन्नताएँ तथा उसको सांस्कृतिक एकता का परि...

Gaban summary

गबन प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है। ‘निर्मला’ के बाद ‘गबन’ प्रेमचंद का दूसरा यथार्थवादी उपन्यास है। कहना चाहिए कि यह उसके विकास की अगली कड़ी है। ग़बन का मूल विषय है - 'महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव'। ग़बन प्रेमचन्द के एक विशेष चिन्ताकुल विषय से सम्बन्धित उपन्यास है। यह विषय है, गहनों के प्रति पत्नी के लगाव का पति के जीवन पर प्रभाव। गबन में टूटते मूल्यों के अंधेरे में भटकते मध्यवर्ग का वास्तविक चित्रण किया गया। इन्होंने समझौतापरस्त और महत्वाकांक्षा से पूर्ण मनोवृत्ति तथा पुलिस के चरित्र को बेबाकी से प्रस्तुत करते हुए कहानी को जीवंत बना दिया गया है। इस उपन्यास में प्रेमचंद ने पहली नारी समस्या को व्यापक भारतीय परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा है और उसे तत्कालीन भारतीय स्वाधीनता आंदोलन से जोड़कर देखा है। सामाजिक जीवन और कथा-साहित्य के लिए यह एक नई दिशा की ओर संकेत करता है। यह उपन्यास जीवन की असलियत की छानबीन अधिक गहराई से करता है, भ्रम को तोड़ता है। नए रास्ते तलाशने के लिए पाठक को नई प्रेरणा देता है। कथानक संपादित करें ‘ग़बन’ की नायिका, जालपा, एक चन्द्रहार पाने के लिए लालायित है। उस...
जीवन परिचय प्रसाद जी का जन्म माघ शुक्ल 10, संवत्‌ 1946 वि० [1] (तदनुसार 30जनवरी 1889ई० दिन-गुरुवार) [2] को काशी के सरायगोवर्धन में हुआ। इनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे और इनके पिता बाबू देवीप्रसाद जी कलाकारों का आदर करने के लिये विख्यात थे। इनका काशी में बड़ा सम्मान था और काशी की जनता काशीनरेश के बाद 'हर हर महादेव' से बाबू देवीप्रसाद का ही स्वागत करती थी। किशोरावस्था के पूर्व ही माता और बड़े भाई का देहावसान हो जाने के कारण १७ वर्ष की उम्र में ही प्रसाद जी पर आपदाओं का पहाड़ ही टूट पड़ा। कच्ची गृहस्थी, घर में सहारे के रूप में केवल विधवा भाभी, कुटुबिंयों, परिवार से संबद्ध अन्य लोगों का संपत्ति हड़पने का षड्यंत्र, इन सबका सामना उन्होंने धीरता और गंभीरता के साथ किया। प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई, किंतु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत , हिंदी, उर्दू , तथा फारसी का अध्ययन इन्होंने किया। दीनबंधु ब्रह्मचारी जैसे विद्वान्‌ इनके संस्कृत के अध्यापक थे। इनके गुरुओं में ' रसमय सिद्ध ...

सूरदास

सूरसागर सूरसागर , ब्रजभाषा में महाकवि सूरदास द्वारा रचे गए कीर्तनों-पदों का एक सुंदर संकलन है जो शब्दार्थ की दृष्टि से उपयुक्त और आदरणीय है। इसमें प्रथम नौ अध्याय संक्षिप्त है, पर दशम स्कन्ध का बहुत विस्तार हो गया है। इसमें भक्ति की प्रधानता है। इसके दो प्रसंग "कृष्ण की बाल-लीला' और "भ्रमर-गीतसार' अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। सूरसागर में लगभग एक लाख पद होने की बात कही जाती है। किन्तु वर्तमान संस्करणों में लगभग पाँच हजार पद ही मिलते हैं। विभिन्न स्थानों पर इसकी सौ से भी अधिक प्रतिलिपियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनका प्रतिलिपि काल संवत् १६५८ वि० से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी तक है इनमें प्राचीनतम प्रतिलिपि नाथद्वारा ( मेवाड़ ) के सरस्वती भण्डार में सुरक्षित पायी गई हैं। दार्शनिक विचारों की दृष्टि से " भागवत ' और "सूरसागर' में पर्याप्त अन्तर है। सूरसागर की सराहना करते हुए डॉक्टर हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है - काव्य गुणों की इस विशाल वनस्थली में एक अपना सहज सौन्दर्य है। वह उस रमणीय उद्यान के समान नहीं जिसका सौन्दर्य पद-पद प...
हिन्दी साहित्य का इतिहास संपादित करें मुख्य लेख:  हिंदी साहित्य का इतिहास हिंदी साहित्य का आरंभ आठवीं शताब्दी से माना जाता है। यह वह समय है जब  सम्राट् हर्ष  की मृत्यु के बाद देश में अनेक छोटे-छोटे शासन केंद्र स्थापित हो गए थे जो परस्पर संघर्षरत रहा करते थे। विदेशी  मुसलमानों  से भी इनकी टक्कर होती रहती थी।  हिन्दी साहित्य  के विकास को आलोचक सुविधा के लिये पाँच ऐतिहासिक चरणों में विभाजित कर देखते हैं, जो क्रमवार निम्नलिखित हैं:- आदिकाल  (१४०० ईसवी से पहले) भक्ति काल  (१३७५-१७००) रीति काल  (१७००-१९००) आधुनिक काल  (१८५० ईस्वी के पश्चात) नव्योत्तर काल  (१९८० ईस्वी के पश्चात) आदिकाल (१०५० ईसवी से १३७५ ईसवी) संपादित करें मुख्य लेख:  आदिकाल हिन्दी साहित्य आदिकालको आलोचक १४०० ईसवी से पूर्व का काल मानते हैं जब  हिन्दी  का उद्भव हो ही रहा था। हिन्दी की विकास-यात्रा  दिल्ली ,  कन्नौज  और  अजमेर  क्षेत्रों में हुई मानी जाती है।  पृथ्वीराज चौहान  का उस समय  दिल्ली ...