1st year 2nd sem

MODERN POETRY

PANCHVATI

एक दिन लक्ष्मीनारायण मिश्र


प्रश्न- एकांकी नाटक के तत्वों की दृष्टि से (एक दिन) की आलोचना कीजिये


एकांकी का परिचय- हिन्दी नाट्य साहित्य में श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र का अत्याधिक महत्वपूर्ण स्थान है और समस्यामूलक नाटकों की परम्परा का सूत्रपात उन्हीं से हुआ। अशोक, संयासी, राक्षस का मंदिर, मुक्ति का रहस्य, राजयोग सिंदूर की होली, आधी रात, जात की वीणा, गरुजुध्वज और यक्ाराज आदि नारकों के साथ-साथ उनीने कुछ सुन्दर एकांकी नाटक भी लिखे हैं। 'एक दिन' उनका उल्लेखनीय सामाजिक एकांकी है और इसमें उनकी एकांकी कला विचारधारा का सुन्दर उदाहरण कहा जाता है।


एकांकी का सारांश एकांकीकार ने एकांकी का प्रारम्भकरते हुए लिखा है 'देहात के किसी गांव में खपरैल का मकान। माटी की दीवारें, चिकनी कर चूने से लीपी गई हैं। आगे की ओर काट के खम्भों पर ओगरा। खम्भे काले पड़ गये है, उनके रंग से ही उनकी आयु फूट रही है। उनका हीर इतना सूख गया है कि जगह-जगह देखी-मेढ़ी दरारें पड़ गई है। जाति का गुण और बल और कही माना जाय या नहीं, इन खम्भों की लकड़ी में ती ठोस है।


के शीशम के खम्बे अपनी टेक से पत्थर के कान काट रहे हैं। भीतर जाने का पुराना द्वार बायीं ओर पड़ता है। 


वापसी 

श्री विष्णु 'प्रभाकर

'वापसी' एकांकी के सारांश पर संक्षेप में प्रकाश डालिये ?


उत्तर- प्रस्तुत्त एकांकी 'वापसी' के लेखक श्री विष्णु प्रभाकर जी हैं इस एकांकी में लेखक ने बताया है कि अक्टूबर 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध असगर अपने अन्य साथियों सहित पैरासूट द्वारा 'भारत-भूमि पर उतरा। जिससे वह अपने देश के लड़ाकू विमानों को सिंगनल दे सके कि भारत के किन-किन स्थानों पर बम-वर्षा करनी है। जब वह भूमि पर उतर कर नक्शा फैलाता है। तो पाता है कि वह तो वही गाँव है जहाँ उसका जन्म हुआ था। उसके साथी उससे बातचीत करना चाहते हैं किन्तु वह अपने गाँव के पास बहने वाले नाले और खण्डहरों को देखकर अपने अतीत्वा में खो जाता है और इधर-उधर घूमने का बहाना बनाकर अकेला रह जाता है। जिससे पिछली यादों को ताजा कर सके। इतने में अचानक ट्रेन की सौटी सुनाई पड़ती है और उसका ध्यान भंग हाँ जाता है। वह वर्तमान में लौट आता है। वह अपने देश पाकिस्ताच को याद करके लड़ने का निश्चय करता है। फिर सोचता है कि चाहने पर भी पाकिस्तान बन गया। अपने प्यारे गाँव को छोड़कर पाकिस्तान जाना पड़ा। मित्र शत्रु हो गये। वह भी कैसी विवशता थी लेकिन अब उसे यह सब नहीं सोचना चाहिये क्योंकि य सोचना शैतान का काम है और वह गुनाह है। 


बदसूरत राजकुमारी 

कृष्णचन्द्र


'बदसूरत राजकुमारी' नामक पाठ के सारांश पर संक्षेप में प्रकाश डालिये ।

उत्तर- प्रस्तुत पाठ 'बदसूरत राजकुमारी' के लेखक श्री कृष्णचन्द्र जी हैं। इस पाठ में लेखक ने बताया है कि सिंहल देश का राजकुमार उदयसिंह और उसका नौकर पांचू दर्शन द्वीप जा रहे थे। उदयसिंह को ज्ञात हुआ कि महाराणा उग्रसेन की पुत्री चन्द्रा विवाह के योग्य है। और बहुत सुन्दर है। रास्ते में जाते हुए उदयसिंह ने पांचू से कहा कि वह राजकुमार होने का अभिनय करेगा और वह स्वयं पाँचू का। उदयसिंह काफी सुन्दर था इसी लिए उसे निश्चय था कि इतनी सुन्दर राजकुमारी उसे पसन्द न करेगी। अतः उसने सोचा कि अपने स्थान पर विवाह-मण्डप में अपने नौकर को बिठा देगा और बाद में चन्द्रा को लेकर चला जायेगा। राजकुमार उदयसिंह ने दर्शन द्वीप पहुंचने की सूचना महाराणा उग्रसेन के मन्त्री को दी। उसने महाराणा को समाचार पहुंचाया। महाराणा ने एक चित्रकार से अपनी पुत्री चन्द्रा का चित्र बनवाया था। उसने चन्द्रा की वैसी ही तस्वीर बना दी जैसी वह थी। उस चित्र को देखकर महाराणा बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने चित्रकार को मृत्यु दण्ड की घोषण की। इसके बाद उस राज्य के किसी भी चित्रकार ने चन्द्रा का चित्र बनाने का साहस न किया एक बार एक मन्त्री ने महाराणा से चन्द्रा की सुन्दरता को लेकर बहस की।


आखेट 

श्री जी.जे. 'हरिजीत'


'आखेट' नामक एकांकी का सारांश अपने शब्दों में लिखिये ?

उत्तर- प्रस्तुत एकाकी आखेट' के लेखक श्री जी.जे. 'हरिजीत' जी हैं। इस एकांकी में लेखक ने बताया है कि स्थान नदी का किनारा है। समय उषा कान है। नदी में कलरव हो रहा है और कर्ण की प्रार्थना सुनाई पड़ रही है। थोड़ी देर बाद सूर्य की किरणें दिखाई देती हैं। जिसमे मब और प्रकाश फैल जाता है। जब कर्ण अपनी प्रार्थना ममाप्त करता है तब उसे सामने कृष्ण खड़े दिखाई पड़ते हैं। वह कृष्ण को देखकर बहुत प्रसन्न हो जाता है। इसके बाद दोनों गले लगते हैं। कृष्ण कहते हैं "नहीं। मैं तुम्हारी महिमा को जानता हूँ। आज सर्वेरे ही तुमने मुझे दर्शन दिये तो ऐसा लगता है कि आज मंग भाग्य चमकने वाला है।" इस पर कृष्ण कहते हैं "तुम भाग्यशाली हो, केवल परिस्थितियों ने तुम्हारे साथ खिलवाड़ किया है। नहीं तो तुम हस्तिनापुर के सम्राट बनते ।"


यह सुनकर कर्ण कहता है कृष्ण। तुम मुझे मूर्ख मत बनाओ मैं सूत-पुत्र हैं, जिसके लिए समाज में कोई स्थान नहीं है। इस पर कृष्ण कहते हैं "तुम मृत पुत्र नहीं हो कर्ण। तुम क्षत्रिय हो। मैं तुम्हारे जन्म का रहस्य जानता हूँ। तुम्हारे जन्म का रहस्य केवल तीन व्यक्ति जानते है। कर्ण कहता है "वे तीन कौन हैं? एक तो तुम हो।

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