1st Year 1st semester
1st Year 1st Semester
UNIT - 1
भारतीय संस्कृति
भारत एक विशाल देश है। इस कारण कोई भी विदेशी इसे कई देशों को समूह कह उठेगा। भारत अपनी विभिन्नताओं के लिए भी प्रसिद्ध है। प्रकृति की दृष्टि से हो या भाषा की दृष्टि से थे विभिन्नताएँ देखने को मिलते हैं। परंतु इन विभिन्नताओं के बीच एक एकताहुए लेखक बनाते है कि हमारी संस्कृनि नैतिकता और आध्यात्मिकता है, वह एक के समान है। आज तक उन्होंने हमारी संस्कृ जीवित रखा है। विषम से विषम परिस्थितियों इमें मिटने से बचा लिया है।
अहिंसा तत्व के बारे में बताने हुए लेखक कि यह तो विश्व के लिए भारत की देन है। आहिर का दूसरा नाम ही न्याया है। अहिंसा और त्याग की भावना से इसने सबको फूलने-फलने का अवसर दिया है। | इमने भिन्न-भिन्न विचारधाराओं को स्वच्छंदता पूर्वक अपने-अपने रास्ते में बहने दिया। भिन्न-भिन्न देशों की संस्कृतियों मियों को अपने में मिलाया और अपने को उसमें मिलने दिया।
हमारी सामूहिक चेतना दूढ़ है और यही हमारे देश का प्राण है। इस वैज्ञानिक युग में जब हमारे हाथों में अपरिचित शक्ति है।
विशेषता : भारत की विभिन्नताएँ तथा उसको सांस्कृतिक एकता का परिचय मिलना है। भारतीय संस्कृति की विशिष्टना का मार्मिक चित्रण दुआ है। भाषा शैली सरल है तथा प्रवाहशील है।
रजिया
बड़े नेता बने के बाद, लेखक चुनाव के चक्कर में एक गाँव में आते है। वहीं उन्हें संजिया की याद इग गयी। गयी। अद्भुत वंश भूषण तथा सुंदर रूप-रंगवाली उस लड़की को अपने प्रचपन में अपने आँगन में देखकर लेखक आकर्षित हो जाते हैं। रजिया अपनी माँ के साथ आयी थी दोनों बूट हो गए। लेखक पढ़ाई के लिए शहर चले गए। रजिया, श अपनी माँ के साथ चूडियाँ बेचनी थी २१ धीरे धीरे वह चहियों पहनाने की कला में पारंगत हो गई। गाँव की बहुंचे उसी के हाथों चूडियों पहनना पसंद करते थे। हसन के साथ उसका विवाह हुआ। वह बाल-बच्चेवाली हो बन गई। फिर भी उसका बचपना नही गया। लेखकक का भी विवाह हो गया।
लेखक अब पहना शहर में एक अक्बार में काम करते थे। समाज में उसका बड़ा नाम मा। एक तिन अचानक की चौकी पर रजिया, कसे भेंट हुई। इसन भी साथ था। लेखक से बदले हुए समाज के बारे में शिकायत करने लगी। हिन्दू मुसलमानों के बीच का वह आत्मीय संबंध अब नही रहा।
कई सालों के बाद अब लेखक एक नेता रूप में रजिया गाँव आये थे। राजिया अब बूढी दो चुकी थी। अपनी पोती को लेखक के पास भेजीई 1 बिल्कुल रजिया जैसी दिखने वाली उस बच्ची के साथ लेखक रजिया के घर आए। अपनी बहुओ के सहारे बाहर आकर सलाम करते समय रजिया खुशी है कारण युवती बन गई थी। उसकी नीली आँखों आँसे फिर से चमक उठी और साथ ही चमक उठी उसकी चाँदी की बालिया।
मक्रील
मक्रील कहानी में यशपाल ने एक कति और एक नवयुवती के आवेगपूर्ण प्रेम का चित्रण किया है। विश्व प्रसिद्ध कवि मक्रील पहाड़ी पर छुट्टियाँ बिताने आए है। वहाँ जय-जयकार के साथ उनका बड़ा स्वागत होता है। उन लोगों में एक सुंदर युवती भी है। भीड़ के कारण वह कवि को अच्छी तरह देख न सकी। वह भी उसी होटल में ठहरी हुई थी जहाँ कवि को ठहराया गया था।
रात के समय, कवि मक्रील नदी का सौदर्य दर्शन करने आया । रास्ते में युवती मिली। युवती कवि के साथ जाकर मक्रील तक का रास्ता दिखाया। दोनों में बातें, होने लगी। मक्रील के वेग तथा युवती के यौवन के प्रभाव से कवि को वृद्धावस्था काटने लगी। सारी दूसरी रम भी युवती के साथ मकील की ओर गया और अपना एकाकीपन तथा दर्द दर्द को युवनी के सामने खालकर कहा। । युवती ने उसकी संगिनी बनने का आश्वासन दिया।
आश्वासन पाने के बाद भी कवि को विश्वास नहीं आया। उसकी परीक्षा लेने के लिए अपने साथ मक्रील के गर्भ में कूदने को कहा। सोचे विना युवती जट कूद पड़ी। कवि अवाक रह गए। कमरे में वापस जाकर उसने शीशे व तोड़ दिए और मृन मृत्यु की गोद में समा गए ।
विशेषता: पूरी कहानी, मानव मनोविज्ञान पर आधारित है। कवि की अतृप्त वासना का प्रभाव -शाली चित्रल चित्रण हुआ है। कहानी की भाषा काट्यात्मक है। शैली प्रवाहशील है।
बहता पानी निर्मला
लेखक को बचपन से ही नक्शे देखने का के धोड़े में शौक था। कल्पना के बड़े नागह-जगह घूमते थे। कूड़ करने की आदत आदत पर सैर हो गई। धुमक्कड़ बन गए परन्तु उन्हे व्यवस्थित व्यवस्थित कर रूप से यात्रा करने का शौक नहीं था। अचानक सोचकर कही चला जाता था।
एक दिन इसी तरह शिलंग जा पहुँच वहाँ सोनारी नामक स्थान में डाक बंगले में ठहरे हुए थे। उस प्रांत में डि-ख नदी बहती थी। बरसात के मौसम मौसम थे। एक दिन घूमने निकल सवेरे घूम नक आई हुई थी। लेखक ने सोचा कि शिवसागर शूहर तक जाकर दाँत के ब्रश और मोटर की डिबरी लेकर आएंगे। दो तीन घंटे बाद जब वापस आए तो सड़क पानी में डूबा हुआ था। गाड़ी को आगे बढ़ाया तो मान जा नहीं पा रहा था। यानी जोर से खींच रहा था। बड़ी कठिनाई हु के साथ साथ रिवर्स गियर में ही गाड़ी चलाकर पीछे आ जप्त गया। चाय के बागानों से सोनारी तक जानेवाला दूसरा रास्ता भी पानी में इबा हुआ था। विवश होकर लेखक शिवसागर तब वापस आ गए। बारह दिन बाढ़ के कारण वहाँ फैंस गए। अंत में मे जब पानी घटी तो सोनारी जा पहुँचे। वहाँ डाक बंगले में डाक घुसा हुआ था। सारे सामान 4 भी पानी नष्ट हो गए। बुचा या केवल ऊपर रखा हुआ साबुन की डिब्बा ॐॐ एवं दाँत के ब्रश लेखक बनाते है कि यात्रा करने का उन्हे अब भी शौक है। पाठकों को भी घूमना घूमने का संदेश देते है क्योंकि टिकने का नाम तो मौत है ।
विशेषताः इस यात्रा विवरण २ में असम के गाँव तथा बाढ़ का वर्णन किया है। हास्यात्मक शैली में पाठकों को अपने साथ यात्रा करने के लिए प्रेरित करते हैं। भाषा बहुत ही सरल है।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी
इस संसार में हजारों सालों में एक महान व्यक्ति का जन्म होता है। गाँधीजी ऐस ही महान व्यक्ति थे। हम केवल उन्ही को महात्मा क्यों कहते है? क्योंकि उन्होने नैतिक अस्त्रों को से सुशक्त सशक्त अंग्रेज साम्राजय को हिला दिया। अहिंसा एवं सत्याग्रह के सिद्धांत के सहारे भारत को स्वाधीनता दिला दिया।
जब गाँधीजी ने भभारतीय राजनीति में प्रवेश किया भारतवासियों को दशा दयनीय थी। वे तब भारत शोषित थे। से दबे हुए हुए थे। मार्गहीन, भावित गाँधीजी ने उन्हें मार्ग दिखाया। अपने उत्तका बना दिया। अपने को भारत के गरीब से गरीब की तरह ढाल लिया। लोगों के मन में विश्वास भरा। अंग्रेज द्वारा दिए गए उपाधियों को, छोड़ने का अनुरोध किया 1 लोगों को से अंग्रेजों के धाक को मिन मिटा दिया। अंग्रेज सरकार हिलने लगा।
गाँधीजी ने भारतवासियों को सादगी सिखा दिया। कॉग्रेज पार्टी को लोगों का बना दिया। नेनाओं को गाँव में भेज दिया। पूरे देश में एक नया जोश फैला दिया। राजनीति के साथ सुधार के कार्य में भी लग गया। समाज इस प्रकार अपनी नैतिक अस्त्रों तथा जनशक्त्रि के सहारे भारत को स्वतंत्रता दिला दिया (इस महान व्यक्ति की मृत्यु 30 १० जनवरी 1948 को को एक हिन्दू संप्रदायवादी के हाथों से हु हुई । विश्व भर में उसकी मृत्यु का शोक मनाया।
विशेषना :- यह एक संस्मरण है। गाँधीजी के व्यक्तिगत गुण, उनके सिद्धांत, स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान तथा समाज सुधार का मार्मिक चित्रण मिलता है। भाषा बहुन ही सरल है।
निंदा रस
परसाई कहते है कि इस समाज में धृतराष्ट्र जैसे लोग रहते है जिसने ओम के प्रति कपट का व्यवहार किया। ऐसे लोगों से भी गले मिलना पड़ता है। इस अवस्था में मन बाहर खींचकर केवल करीले शरीर को आगे बढ़ाना है।
अपने एक मित्र 'के' के बारे में बताते हुए पस्साई कहते है कि वह अभिनय में सक्षम है। मीठी बोली, ओखों में छलकती स्नेह और आत्मीयता । मेरे मगर ये सब बनावटी है। वास्तव में कह दूसरों की निंदा करने में आनंद लेनेवाला है। उसके पार निंदा का एक केटलॉग है। वह आदत से मजबू होकर झूठ ही बोलता है। मित्रों तथा विरोधियों को निद्रा की तलवार से चीरता गया।
परसाई निंदा की महिमा बनने हुए कहने कि निंदकों में भक्तों से भी तीव्र एकाग्रता एवं आत्मीयता है। इसलिए संतों में निंदक नियार राबिए अंगन कुठी चवाय कहा है।
निंदक तीन प्रकार के होते है। मिशनरी निदक पहच आते हैं। हैं। उनका किसी से भेंट या इस नहीं है। फिर भी चौबीसो घंटे निंदा करते रहते हैं। उनके लिए निंदा करना एना ट्रॉनिक के समान है। दूसरे प्रकार के निंदक ट्रेड युनियनवाले निंदक है। चारों दिशाओं से समाचार ढूंढकर उनका पक्का माल बनाकर बॉटलो है मनव मन्न मतलब अपवाद फैलाते है। इसके लिए समय की जरूरत है। अत: कामचोर लपे ही यह काम करते है।
नीसरे प्रकार के निंदक ईषर्या द्वेष से प्रेरित निद्रक है। दूसरों की सक्षमता तथा अपनी अक्षमता देखकर जलते है और निंदा करके थोड़ा आराम पाने हैं। ऐसे निंदक स्वयं सुखी है। वे स्वयं दंडित है।
अन परसाई कहते है कि निंदा में रस है। शायद इसीलिए सूरदास ने निंदा सनद रसाल कहा है। घटना सुनाकर जानकीनाथ को दीवान पद के लिए चुना। किसान के रूप में वहीं आया था। सब लोग इस चुनाव से संतुष्ट थे।
विशेषता, यह एक उपदेशात्मक कहानी है। इसमें कर्तव्यपरायणता का बोध है। सरदार सुजान सिंह कहानी के एकमात्र प्रमुख पात्र है। पूरी कहानी दीवान पद की परीक्षा के बारे में है। अतः शीर्षक सार्थक है। भाषा बहुत ही सरल है।
UNIT - II
परीक्षा
देवगढ़ के दीवान सरदार सुजान सिंह बूढ़े हो चुके थे। चालीस साल राज्य सेवा व बाद वह औराम करना चाहते थे। राजा ने उन्हें एक सुयोग्य दीवान चुनने की जिम्मेदारी सौंप दी। देश विदेश के समाचार पत्रों में विज्ञापन आया । उम्मीदवार को ग्रेजुवेट होने की जरूरत नही थी। एक महीना तक देवगढ़ में ठहरना पड़ेगा। वहाँ, उनकी परीक्षा होगी। विज्ञापन को देखते ही हलचल मच गई । उम्मीदवार देवगढ़ की ओर रवाना हो गए। देवगढ़ में उम्मीदवारों के रहन-सहन का प्रबंध किया गया। सबने अपने वास्तविक गुण को छिपाकर दूसरे से अच्छे दिखने की कोशिश की। सब इसे भाग्य का खेल ही मानते थे। सरदार सुजान सिंह दूर से उनकी जाँच कर रहे थे।
एक दिन शाम को सभी उम्मीदवार हॉकी खेलकर वापस आ रहे थे। रास्ते में एक किसान को देखा। उसकी लदी गाड़ी कीचड़ में फंसी हुई थी। सब बिन देखे बही चले गए। किसान की सहायता के लिए कोई नहीं आया। उनमें से एक युवक था जानकीनाथ। वह घायल था। उसे किसान पर दया आई। घुटनों तक कीचड़ में कूदकर उसने गाड़ी को धक्का दिया। गाडी बाहर आ गई। किसान उसे आशीर्वाद देकर चला गया ।
एक महीना बीत गया। निर्णय का दिन आया। सब राजसभा में एकत्रित थे। सबको संबोधित करते हुए दीवान में सुजान सिंह ने बताया कि दीवान की जरूरत है। उन्होने किसान-वाली घटना सुनाकर जानकीनाथ को दीवान पद के लिए चुना। किसान के रूप में वहीं आया था। सब लोग इस चुनाव से संतुष्ट थ
विशेषताः यह एक उपदेशात्मक कहानी है। इसमें कर्तव्यपरायणता का बोध है। सरदार सुजान सिंह कहानी के एकमात्र प्रमुख पात्र है। पूरी कहानी दीवान पद की परीक्षा के बारे में है। अतः शीर्षक सार्थक है। भाषा बहुत ही सरल है।
ममता
ममता रोहतास दुर्ग के मंत्री चूड़ामणि की बेटी है। बाल विहता है। मंत्री अपनी बेटी के भविष्य के बारे में चिंतित थे। दूर्ग पर शेरशाह का आक्रमण होने वाला था। बेटी के बारे में चिंतित मंत्री ने शेरशाह के साथ षड्यंत्र रचाया। बदले में स्वर्ण मुद्राएँ एवं आभूषण लेकर ममता के सामने समर्पित किया। वीर क्षत्राणी ममता ने उसे ठुकरा दिया। युद्ध में चूडामणी मारे गए। ममता दुर्ग से भाग निकली।
दुर्ग से भागकर ममता काशी में आ पहुँची। वहाँ एक कुटियाँ बनाकर रहेने लगी। एक दिन रात को किसी ने उसका टूवार कटकटाया। बाहर एक मुगल सैनिक बड़ा था। चौसा युद्ध में शेरशाह से हारकर आया था। उन उसने एक रात केलिए आश्रय माँगा। विधर्मी समझकर पहले ममता हिचकिचाई पर तुरत ही उसे अतिथि के प्रति अपना कर्तव्य याद आई और उसने उसे शरण दे दी। खुद पास के खण्डहर में चनी गई।
सर्वेरे सवेरा होते ही उस सैनिक की खोज मे • घुड़सवार आए। सैनिक ने उन्हे सा। वृत्तांत सुनाया। बदले में वह ममता के लिए एक पक्का मकान बनवाना चाहता था। परन्तु ममता बाहर नहीं आई।
कई साल बीत गए। अब ममता बूढी हो चुकी थी। वह मृत्युशय्या पर लेटी थी। तब सम्राट अकबर के सिपाही उसे ढूँढकर आए। कई साल पहले कुटियों में शरण लेनेवाला सैनिक बादशाह हुमायून था। ममता ने उस सैनिक को अंदर बुलाकर बताया कि कई साल पहले उसी ने उसे शरण दिया था। वह बदले में कुछ भी नहीं चाहती थी। कहते-कहते मम्ना मर गई। कुछ समय बाद उस जगह पर एक भव्य मंदिर बनवाया गया। शिलालेख में लिखा था कि एक रात को मुगल बादशाह हुमायून वहाँ ठहरे थे। उसमें ममता का नाम तक नहीं था।
विशेषता : यह एक ऐतिहासिक कहानी है। इसमें मु पठान युद्ध का चित्रण है। भारतीय संस्कृति का गौरख गान गाया हुआ है। ममता इस कहानी के प्रमुख पात्र तथा नायिका है। संस्कृत मिश्रित भाषा का प्रयोग हुआ है। शीर्षक भी सार्थक है।
अपना - पराया
लंबी अवधि के बाद एक सैनिक युद्ध के घर लौट रहा था। यात्रा का एक मात्र साधन घोटा वह अपनी पत्नी और बेटे से मिलने के लिए उत्सा था। रास्ते में एक समय पर वह ठहरा।
विशेषता: यह एक मार्मिक कहानी है। एक सैनिक की मनोदशा का मार्मिक चित्रण हुआ है। पूरी कहानी सैनिक पर आधारित है। वह पराया समझकर उस बच्चे को बाहर करना चाहता था। परन्तु वह उसका अपना बच्चा है, ये जानने के बाद उसका मन बदलता है। अनः शीर्षक सार्थक है। भाषा बहुत सरल है। कहानी का अंत हृदयस्पर्शी है।
आदमी का बच्चा
डौली पाँच साल की एक लड़की है। मि बागा उसके पिता है। वे एक चीफ इजीनिधर है. माँ-बाप के पास बेटी के लिए समय की नहीं है। आसकी देख-रेख बिदी नानक आधा क्ली
डॉली के बैंगलों के पीछे के नौकरी के क्वाटर में में माती और धोबिन रहने है। माली को एक बच्चा हुआ है। डॉली इस बच्चे को उस बच्चे को देखना चाहती जाने नहीं देती। वह नहीं है। उसकी माँ उसे जाने नहीं चाहती थी कि डॉली उन अंते काले बच्चों से जीते। जब किसी तरह डॉली वहाँ चली। तरह को डाँट पड़ती।
डॉली के घर की कुत्तिया ने कई पिल्लों को जन्म दिया था। डॉली उनके साथ खेलती थी, डॉली के पिता ने माली से कहकर उन पिल्लों के गरम पानी में दुबोकर मरवा दिया। ये बात जानकर डौली उदास हो गई 1 उसे आश्वासन दिलाने के लिए बनाया गया कि पिल्लों को पिलाने के लिए दूध न होने के कारण मरवाया गया था।
कुछ ही दिनों के बाद मान्ली का बच्चा भूख के कारण मर गया। ये देखकर डॉली ने आया से पूछा कि क्या माली के बच्चे को भी गरम पानी में डुबोकर मरवाया गया था ? डौली को चुप कराने हुए अवाक आया बताती है कि वह आदमी, का बच्चा है। आदमी का बच्चा ऐसे नहीं मरता। कहते कहने आया भी उदास हो गई। उसका बच्चा भी इसी तरह भूख के कारण मरा था। कंगाल एवं गरीब लोगों की दयनीय दशा के बारे में सोचकर आया उदास हो जानी है।
विशेषता: यह बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहान है। गरीबों की दयनीय दशा का चित्रण मिलता है अंग्रेज़ मोह में पड़े भारतीय समाज का वातावरण है हौली ही इस कहानी का केन्द्र पात्र है। 'आदमी का बच्चा' शीर्षक इस कहानी के लिए बहुत ही सार्थक है। भाषा में कई अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग हुआ ।
भोलाराम का जीव
एक दिन यमलोग में इलचल मच गई। भोलाराम नामक आदमी का जीव यमद्नों को चकमा देकर कही गायब हो गया। सब परेशान थे। उस समय नारद मुनि वहाँ लेकर आए । समाचार सुनकर उस जीव को ढूँढ़ने के लिए धरती पर पृथ्वी पर आए ।
नारद भूलोक में भोलाराम के घर जा पहुँचे । वहाँ उसकी पत्नी तथा बेटी से हाल सुन लिया। रिटयर होने के पाँच साल बाद भी पेंशन न मिलने पर भोलाराम भूख के कारण मर गया था। परिवार पर तरस खाकर उन्हें पेंशन दिलवाने के लिए नारद भोलाराम के दफ्तर जा पहुँचे । उस कार्यालय म के चपरासी से लेकर बड़े बाब तक सब भ्रष्ट थे। पहले नारद को तीन बार परे कार्यालय का चक्कर काटना है घड़ा काटना पड़ा। अंत में बड़े बालू से मिलने मिले। उनसे पता चला कि रिश्वत झ क्ष देने के कारण भोलाराम को पेंशन नहीं मिला। साहब नावद से रिश्वत के रूप में उनकी वीणा माँगी। उसके बाद पेंशन के कागजात को मंगवाया। नाम पूछने पर नाच्द ने जोर से कहा "भोलाराम" । तुरंत पेंशन के पेपर से जवाब आया "कौन" ? । हाँ। वह भोलाराम का जीव ही था। वह स्वभ स्वर्ग भी नहीं चाहता। उसे केवल अपना पेंशन चाहिए था।
विशेषताः यह एक फैंटसी है। कई काल्मिक पात्रों के द्वारा, सरकारी कार्यालयों में प्रचलित प्र भ्रष्टाचार पर प्रहार किया है। भाषा बहुत ही सरल है। शीर्षक भी सार्थक है।
वापसी
वापसी' आधुनिक युग के वास्तविक यथार्थ को प्रस्तुत करती है कहानी यह दर्शाती है कि आधुनिक पीढ़ी के लिए परिवार में पुराने मूल्यों की तरह पिता का भी कोई स्थान नहीं रह गया है। वह पत्नी व बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित्त पात्र मात्र बन गया है। पत्नी भी जिस व्यक्ति के अस्तित्व से पत्नी मांग में सिंदूर डालने की अधिकारिणी है तथा समाज में प्रतिष्ठा पाती है। उसके सामने वह दो वक्त भोजन की थाली रख देने से ही अपने सारे कर्तव्यों से छुट्टी पा जाती है। गजाधर बाबू की परेशानी यह है कि वह जीवन यात्रा के अतीत के पन्नों को पुनः वैसे ही जीना चाहते हैं किन्तु अब ये संभव नहीं है। क्योंकि अब उनके लिए घरौर परिवार में कोई जगह नहीं है। इसप्रकार यह कहानी वर्तमान युग मे बिखरते मध्यवर्गीय परिवार की त्रासदी तथा मूल्यों के विघटन की समस्या पर प्रकाश डालती है।
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